Wednesday, March 31, 2010

The hardest struggle of all is to be something different from what the average man is.
~Robert H. Schuller

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सच हम नहीं, सच तुम नहीं
सच है सतत संघर्ष ही ।
संघर्ष से हटकर जिये तो क्‍या जिये हम या कि तुम,
जो नत हुआ वह मृत हुआ,ज्‍यो वृन्‍त से झरकर कुसुम ।
जो पंथ भूल कर रूका नहीं,
जो हार देख झुका नहीं,
जिसने मरण को भी लिया हो जीत, है जीवन वही।
सच हम नहीं, सच तुम नहीं।

ऐसा करो जिससे न प्राणों में कहीं जड़ता रहे,
जो है जहां चुपचाप अपने आप से लड़ता रहे।
जो भी परिस्थितियां मिलें,
कांटे चुभें, कलियां खिलें,
टूटे नहीं इंसान बस संदेश जीवन का यही।
सच हम नहीं, सच तुम नहीं।

हमने रचा, आओ हमीं अब तोड़ दें इस प्‍यार को
यह क्‍या मिलन, मिलना वही जो मोड़ दे मंझधार को।
जो साथ फूलों के चले,
जो ढाल पाते ही ढले,
यह जिंदगी क्‍या जिंदगी जो सिर्फ पानी-सी बही।
सच हम नहीं, सच तुम नहीं।

अपने हृदय का सत्‍य अपने आप हमको खोजना
अपने नयन का नीर अपने आप हमको पोंछना।
आकाश सुख देगा नहीं,
धरती पसीजी है कहीं,
हर एक राही को भटक कर ही दिशा मिलती रही।
सच हम नहीं, सच तुम नहीं।

बेकार है मुस्‍कान से ढकना हृदय की खिन्‍नता
आदर्श हो सकती नहीं तन और मन की भिन्‍नता।
जब तक बंधी है चेतना,
जब तक प्रणय दुख से घना,
तब न मानूंगा कभी इस राह को ही मैं नहीं।
सच हम नहीं, सच तुम नहीं।
~ Jagdish Gupt
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